गंगा – सुमित्रानंदन पंत

  • अब आधा जल निश्चल, पीला,–
    आधा जल चंचल औ’, नीला–
    गीले तन पर मृदु संध्यातप
    सिमटा रेशम पट सा ढीला।

    ऐसे सोने के साँझ प्रात,
    ऐसे चाँदी के दिवस रात,
    ले जाती बहा कहाँ गंगा
    जीवन के युग क्षण,– किसे ज्ञात!

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