लहू आता है जब नहीं आता।
होश जाता नहीं रहा लेकिन
जब वो आता है तब नहीं आता।
दिल से रुखसत हुई कोई ख्वाहिश
गिरिया कुछ बे-सबब नहीं आता।
इश्क का हौसला है शर्त वरना
बात का किस को ढब नहीं आता।
जी में क्या-क्या है अपने ऐ हमदम
हर सुखन ता बा-लब नहीं आता।
मीर तकी “मीर” की अन्य प्रसिध रचनायें
- आए हैं मीर मुँह को बनाए
- कहा मैंने
- बेखुदी ले गयी
- अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
- हस्ती अपनी हुबाब की सी है
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