कवि की वासना – हरिवंशराय बच्चन

कह रहा जग वासनामय  हो रहा उद्गार मेरा! 1.  सृष्टि के प्रारंभ में  मैने उषा के गाल चूमे, बाल रवि के भाग्य वाले  दीप्त भाल विशाल चूमे,  प्रथम संध्या के अरुण दृग  चूम कर मैने सुला‌ए,  तारिका-कलि से सुसज्जित  नव निशा के बाल चूमे,  वायु के रसमय अधर  पहले सके छू होठ मेरे मृत्तिका की पुतलियो से  आज क्या अभिसार मेरा?  कह रहा जग वासनामय  हो रहा उद्गार मेरा!

जाओ कल्पित साथी मन के – हरिवंशराय बच्चन

जाओ कल्पित साथी मन के! जब नयनों में सूनापन था, जर्जर तन था, जर्जर मन था, तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के! जाओ कल्पित साथी मन के

तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है – कुमार विश्वास

तुम्हें जीने में आसानी बहुत है तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है ज़हर-सूली ने गाली-गोलियों ने  हमारी जात पहचानी बहुत है कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे  तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है

इस पार उस पार – हरिवंशराय बच्चन

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे – कुमार विश्वास

कुछ छोटे सपनों की ख़ातिर बड़ी नींद का सौदा करने निकल पड़े हैं पाँव अभागे जाने कौन नगर ठहरेंगे वही प्यास के अनगढ़ मोती वही धूप की सुर्ख़ कहानी वही ऑंख में घुट कर मरती ऑंसू की ख़ुद्दार जवानी हर मोहरे की मूक विवशता चौसर के खाने क्या जानें हार-जीत ये तय करती है आज कौन-से घर ठहरेंगे

ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब – हरिवंशराय बच्चन

गुलाब तू बदरंग हो गया है बदरूप हो गया है झुक गया है तेरा मुंह चुचुक गया है तू चुक गया है । ऐसा तुझे देख कर मेरा मन डरता है फूल इतना डरावाना हो कर मरता है!

जाने कौन नगर ठहरेंगे – कुमार विश्वास

कुछ छोटे सपनों की ख़ातिर बड़ी नींद का सौदा करने निकल पड़े हैं पाँव अभागे जाने कौन नगर ठहरेंगे वही प्यास के अनगढ़ मोती वही धूप की सुर्ख़ कहानी वही ऑंख में घुट कर मरती ऑंसू की ख़ुद्दार जवानी हर मोहरे की मूक विवशता चौसर के खाने क्या जानें हार-जीत ये तय करती है आज कौन-से घर ठहरेंगे

एकांत-संगीत – हरिवंशराय बच्चन

तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में, अंतरिक्ष में खग एकाकी, तारा है, अंबर में, भू पर वन, वारिधि पर बेड़े, नभ में उडु खग मेला, नर नारी से भरे जगत में कवि का हृदय अकेला!

जब भी मुँह ढक लेता हूँ – कुमार विश्वास

जब भी मुँह ढक लेता हूँ तेरे जुल्फों के छाँव में कितने गीत उतर आते है मेरे मन के गाँव में एक गीत पलकों पर लिखना एक गीत होंठो पर लिखना यानि सारी गीत हृदय की मीठी-सी चोटों पर लिखना जैसे चुभ जाता है कोई काँटा नँगे पाँव में ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में

शहीद की माँ – हरिवंशराय बच्चन

इसी घर से एक दिन शहीद का जनाज़ा निकला था, तिरंगे में लिपटा, हज़ारों की भीड़ में। काँधा देने की होड़ में सैकड़ो के कुर्ते फटे थे, पुट्ठे छिले थे।