पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी, हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी, अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या, पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी, यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है, खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले। पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
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महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है – कुमार विश्वास
महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है उनकी आँखों से होकर दिल तक जाना रस्ते में ये मैखाना तो पडता हैं तुमको पाने की चाहत में ख़तम हुए इश्क में इतना जुरमाना तो पड़ता हैं
मुझ से चाँद कहा करता है – हरिवंशराय बच्चन
चोट कड़ी है काल प्रबल की, उसकी मुस्कानों से हल्की, राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है| मुझ से चाँद कहा करता है-- तू तो है लघु मानव केवल, पृथ्वी-तल का वासी निर्बल, तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है। मुझ से चाँद कहा करता है--
बात करनी है, बात कौन करे – कुमार विश्वास
बात करनी है, बात कौन करे दर्द से दो-दो हाथ कौन करे हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं चाँद ना हो तो रात कौन करे हम तुझे रब कहें या बुत समझें इश्क में जात-पात कौन करे
मेरा संबल – हरिवंशराय बच्चन
मैं जीवन की हर हल चल में कुछ पल सुखमय, अमरण अक्षय, चुन लेता हूँ। मैं जग के हर कोलाहल में कुछ स्वर मधुमय, उन्मुक्त अभय, सुन लेता हूँ।
फिर बसंत आना है – कुमार विश्वास
तुम समझ तो रही हो न, प्रीतो! वे सब बातें जो मैं इस सूने कमरे की दीवारों को समझा रहा हूँ आधी रात से
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं! – हरिवंशराय बच्चन
अगणित उन्मादों के क्षण हैं, अगणित अवसादों के क्षण हैं, रजनी की सूनी की घडियों को किन-किन से आबाद करूं मैं! क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं! याद सुखों की आसूं लाती, दुख की, दिल भारी कर जाती, दोष किसे दूं जब अपने से, अपने दिन बर्बाद करूं मैं! क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
प्रीतो – कुमार विश्वास
तुम समझ तो रही हो न, प्रीतो! वे सब बातें जो मैं इस सूने कमरे की दीवारों को समझा रहा हूँ आधी रात से
कोई पार नदी के गाता – हरिवंशराय बच्चन
कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर, ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता! कोई पार नदी के गाता!
प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए – कुमार विश्वास
प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए, ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाए, घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले, अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले, लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए, भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाए,


