क्यों पैदा किया था? – हरिवंशराय बच्चन

ज़िन्दगी और ज़माने की कशमकश से घबराकर मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि हमें पैदा क्यों किया था? और मेरे पास इसके सिवाय कोई जवाब नहीं है कि मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे मुझे क्यों पैदा किया था?

हो काल गति से परे चिरंतन – कुमार विश्वास

हो काल गति से परे चिरंतन, अभी यहाँ थे अभी यही हो। कभी धरा पर कभी गगन में, कभी कहाँ थे कभी कहीं हो। तुम्हारी राधा को भान है तुम, सकल चराचर में हो समाये। बस एक मेरा है भाग्य मोहन,

हार गया – कुमार विश्वास

हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें

सफ़ाई मत देना! – कुमार विश्वास

एक शर्त पर मुझे निमन्त्रण है मधुरे स्वीकार सफ़ाई मत देना! अगर करो झूठा ही चाहे, करना दो पल प्यार सफ़ाई मत देना

दो पीढियाँ – हरिवंशराय बच्चन

मुंशी जी तन्नाए पर जब उनसे कहा गया, ऎसा जुल्म और भी सह चुके हैं तो चले गए दुम दबाए। मुंशी जी के लड़के तन्नाए, पर जब उनसे कहा गया, ऎसा ज़ुल्म औरों पर भी हुआ है तो वे और भी तन्नाए।

रूह जिस्म का ठौर ठिकाना – कुमार विश्वास

रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है जीना मरना खोना पाना चलता रहता है सुख दुख वाली चादर घटती वढती रहती है मौला तेरा ताना वाना चलता रहता है इश्क करो तो जीते जी मर जाना पड़ता है मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है

क़दम बढाने वाले – हरिवंशराय बच्चन

अगर तुम्हारा मुकाबला दीवार से है, पहाड़ से है, खाई-खंदक से, झाड़-झंकाड़ से है तो दो ही रास्ते हैं- दीवार को गिराओ,

रंग दुनिया ने दिखाया है – कुमार विश्वास

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ है अँधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ  आइना रख दे मेरे हाथ में, आख़िर मैं भी कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ

मौन और शब्द – हरिवंशराय बच्चन

एक दिन मैंने मैन में शब्द को धँसाया था और एक गहरी पीड़ा, एक गहरे आनंद में, सन्निपात-ग्रस्त सा, विवश कुछ बोला था; सुना, मेरा वह बोलना दुनियाँ में काव्य कहलाया था।

ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? – कुमार विश्वास

ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? ढेर सी चमक-चहक चेहरे पे लटकाए हुए हंसी को बेचकर बेमोल वक़्त के हाथों शाम तक उन ही थक़ानो में लौटने के लिए ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?