हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल। चाँदी सोने हीरे मोती से सजती गुड़ियाँ। इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियाँ इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले हमने तोड़ अभी फेंकी हैं बेड़ी हथकड़ियाँ
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जिहि फन फुत्कार उड़त पहाड़ भार – भूषण
जिहि फन फुत्कार उड़त पहाड़ भार, कूरम कठिन जनु कमल बिदगिलो.
गरुड़ को दावा – भूषण
गरुड़ को दावा जैसे नाग के समूह पर दावा नाग जूह पर सिंह सिरताज को
पद्मिनी गोरा बादल – नरेंद्र मिश्र
पद्मिनी गोरा बादल नरेंद्र मिश्रा द्वारा हिंदी में एक अद्भुत कविता है यह राजपूत योद्धाओं गोरा और बादल की बहादुरी का वर्णन करता है जिन्होंने चित्तोड़ के राजा रावल रतन सिंह को बचाते हैं जिन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने बंदी बना लिया था।
राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यौ – भूषण
राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यौ अस्मृति पुरान राखे वेद धुन सुनी मैं
क़दम मिला कर चलना होगा – अटल बिहारी वाजपेयी
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा।
पंद्रह अगस्त की पुकार – अटल बिहारी वाजपेयी
आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है।।





