जिहि फन फुत्कार उड़त पहाड़ भार, कूरम कठिन जनु कमल बिदगिलो.
Author: भूषण
भूषण (1613-1715) रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों में से एक हैं, अन्य दो कवि हैं बिहारी तथा केशव। रीति काल में जब सब कवि शृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया। 'भूषण' की उपाधि उन्हें चित्रकूट के राजा रूद्रसाह के पुत्र हृदयराम ने प्रदान की थी। ये मोरंग, कुमायूँ, श्रीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ, शिवाजी और छत्रसाल आदि के आश्रय में रहे, परन्तु इनके पसंदीदा नरेश शिवाजी और बुंदेला थे।कविवर भूषण का जीवन विवरण अभी तक संदिग्धावस्था में ही है। उनके जन्म मृत्यु, परिवार आदि के विषय में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार भूषण का जन्म संवत 1670 तदनुसार ईस्वी 1613 में हुआ। उनका जन्म स्थान कानपुर जिले में तिकवांपुर नाम(वर्तमान में टिकमापुर ) का ग्राम बताया जाता है। उनके पिता का नाम 'रतिनाथ' या रत्नाकर त्रिपाठी था। वे काव्यकुब्ज ब्राह्मण थे।
रचनाएँ
शिवराजभूषण, शिवाबावनी, छत्रसालदशक, भूषण उल्लास, भूषण हजारा, दूषनोल्लासा। परन्तु इनमें शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक व शिवा बावनी ही उपलब्ध हैं। शिवराजभूषण में अलंकार, छत्रसाल दशक में छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, दानशीलता व शिवाबवनी में शिवाजी के गुणों का वर्णन किया गया है।
गरुड़ को दावा – भूषण
गरुड़ को दावा जैसे नाग के समूह पर दावा नाग जूह पर सिंह सिरताज को
छत्रसाल : प्रशस्ति – भूषण
कवि भूषण ने महाराज छत्रसाल की प्रशंसा में ‘छत्रसाल दशक’ की रचना की थी । यह कविता उसी का अंश है । इन पंक्तियों में युद्धरत छत्रसाल की तलवार और बरछी के पराक्रम का वर्णन किया है ।
राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यौ – भूषण
राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यौ अस्मृति पुरान राखे वेद धुन सुनी मैं
ब्रह्म के आनन तें निकसे – भूषण
ब्रह्म के आनन तें निकसे अत्यंत पुनीत तिहूँ पुर मानी . राम युधिष्ठिर के बरने बलमीकहु व्यास के अंग सोहानी.
इन्द्र जिमि जंभ पर – भूषण
इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर, रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं। पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर, ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥