वो जो आए हयात याद आई  – ख़ुमार बाराबंकवी

वो जो आए हयात याद आई भूली बिसरी सी बात याद आई कि हाल-ए-दिल उनसे कहके जब लौटे उनसे कहने की बात याद आई

वो हमें जिस कदर आज़माते रहे  – ख़ुमार बाराबंकवी

वो हमें जिस कदर आज़माते रहे अपनी ही मुश्किलो को बढ़ाते रहे  थी कमाने तो हाथो में अब यार के तीर अपनो की जानिब से आते रहे 

कभी शेर-ओ-नगमा बनके  – ख़ुमार बाराबंकवी

कभी शेर-ओ-नगमा बनके कभी आँसूओ में ढलके  वो मुझे मिले तो लेकिन, मिले सूरते बदलके कि वफा की सख़्त राहे कि तुम्हारे पाव नाज़ुक  न लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ-साथ चलके

ये मिसरा नहीं है  – ख़ुमार बाराबंकवी

ये मिसरा नहीं है वज़ीफा मेरा है खुदा है मुहब्बत, मुहब्बत खुदा है कहूँ किस तरह में कि वो बेवफा है मुझे उसकी मजबूरियों का पता है हवा को बहुत सरकशी का नशा है  मगर ये न भूले दिया भी दिया है

दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये  – ख़ुमार बाराबंकवी

दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये  दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये गुज़रे वो जिस तरफ से बज़ाए महक उठी  सबको भरी बहार के दिन याद आ गये

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए – ख़ुमार बाराबंकवी

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए , दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए !