इस रात मैं फिर तनहा कटोरी से अधूरे चाँद में अधूरे से अपने सपनो को छोटे छोटे जगमगाते तारों के नीचे अपनी आँखों को खोले देख रहा हूँ उस आधे कटोरी से चाँद से अँधेरे की तरह बिखर रहे अपने सपनो को समेट रहा हूँ
Author: कुमार शान्तनु
वह एक नव लेखक, संगीतकार, पटकथालेखक और कहानीकार हैं और कई शैलियों में लिखना पसंद करते हैं।कुमार शांतनु एक गतिशील युवक हैं परंतु आपको उनके लेखन में ठहराव की अनुभूति होगी । वे एक चांदी के चम्मच के साथ पैदा हुए लोगों के विपरीत हैं जिन्होंने अपनी पहचान ख़ुद बनाने का संकल्प लिया है ।
उनके ही शदों में
" मैं सिर्फ एक ही बात कहना चाहूंगा: दिन तुम्हारा नहीं होता परंतु रात तुम्हारी होती है"। अगर आपको कभी भी अपना काम करने में कोई कठिनाई हो रही है, दिन रात एक कर दो ! सभी लेखन उत्साही लोगों के लिए, "जब हम लिखने के बारे में बात करते हैं तो हम किस बारे में बात करते हैं? प्रारंभिक कवि सूर्य और चंद्रमा की बातें करते थे , जो कि उनके प्रियजनों का वर्णन करते हैं, जबकि उपन्यासकारों ने अपने समाज की 'कड़वी सच्चाई' व्यक्त करने के लिए संघर्ष किया है। जो कुछ भी आप करते हैं, उसे आप की सराहना करते हुए या नहीं, लोगों के बावजूद अनसुना प्रयास करें। अपने आप में और साहित्य की शक्ति में विश्वास करो, और आरंभ करें! "
the last letter – कुमार शान्तनु
आज कल दुनिया में कुछ ऐसा उठ रहा है तूफ़ान, की बात बात पर "हक़" मांग बैठता है हर इंसान।
समस्या और समाधान – अमीक सरकार / कुमार शान्तनु
आज कल दुनिया में कुछ ऐसा उठ रहा है तूफ़ान, की बात बात पर "हक़" मांग बैठता है हर इंसान।
मुझे नहीं पता – कुमार शान्तनु
ये जो बतियाँ जग रही है राहों पर ये रौशनी दे रही है या अँधेरा मुझे नहीं पता
शायद मैं …सही था – कुमार शान्तनु
उस दिन जाने से पहले वो कुछ कहना चाहती थी पर मैं उसकी बोलती आँखों को सुन ही नहीं पाया
मैं और मेरी कॉफ़ी (कहानी) – कुमार शान्तनु
लव बींस (love beans) तनहा सा रहता था मैं इस तनहा शहर में, कभी खुद से छिपता , कभी खुद से मिलता था। अक्सर देर से सोता था , देर से उठता था। न जाने कितने बरस हो गए थे मुझ जैसे आलसी को सुबह सवेरे की दुनिया देखे सुने । आज बैठा हूँ हाथ में कॉफ़ी (coffee-) का … Continue reading मैं और मेरी कॉफ़ी (कहानी) – कुमार शान्तनु