प्राप्ति – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।

मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;

सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिरा‌एँ हु‌ईं रक्त-वाह ले,
मिलीं – तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।

–  सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

 सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ

  • दीन

  • मुक्ति

  • अट नहीं रही है

  • मौन

  • बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु

  • भिक्षुक

  • राजे ने अपनी रखवाली की

  • संध्या सुन्दरी

  • तुम हमारे हो

  • वर दे वीणावादिनी वर दे !

  • चुम्बन

  • प्राप्ति

  • भारती वन्दना

  • भर देते हो

  • ध्वनि

  • उक्ति

  • गहन है यह अंधकारा

  • शरण में जन, जननि

  • स्नेह-निर्झर बह गया है

  • मरा हूँ हज़ार मरण

  • पथ आंगन पर रखकर आई

  • आज प्रथम गाई पिक

  • मद भरे ये नलिन

  • भेद कुल खुल जाए

  • प्रिय यामिनी जागी

  • लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

  • पत्रोत्कंठित जीवन का विष

  • तोड़ती पत्थर

  • खुला आसमान

  • प्रियतम

  • वन बेला

  • टूटें सकल बन्ध

  • रँग गई पग-पग धन्य धरा

  • वे किसान की नयी बहू की आँखें

  • तुम और मैं

  • उत्साह

  • अध्यात्म फल (जब कड़ी मारें पड़ीं)

  • अट नहीं रही है

  • गीत गाने दो मुझे

  • प्रपात के प्रति

  • आज प्रथम गाई पिक पंचम

  • गर्म पकौड़ी

  • दलित जन पर करो करुणा

  • कुत्ता भौंकने लगा

  • मातृ वंदना

  • बापू, तुम मुर्गी खाते यदि…

  • नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे

  • मार दी तुझे पिचकारी

  • ख़ून की होली जो खेली

  • खेलूँगी कभी न होली

  • केशर की कलि की पिचकारी

  • अभी न होगा मेरा अन्त

  • जागो फिर एक बार

 

static_728x90

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s