मेरे घर भी दिवाली है – विकाश कुमार

बना कर दिए मिट्टी के
ज़रा सी आस पाली है ,
ख़रीद लो मेहनत मेरी ,
मेरे घर भी दिवाली है

रोशनी बेचने वालों के घर
ख़ुद उजाले से ख़ाली है
लोग देखकर पूछते है
क्या मेरे घर भी दिवाली है

देरी ही सही अब तो ख़ुशी लौटे
कबसें मेरी आँखें सवाली हैं
मैं भी कहूँ कभी किसी से
आओ… मेरे घर भी दिवाली है.

– विकाश कुमार

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