जिसे नहीं कुछ चाहिए, वही बड़ा धनवान ।
लेकिन धन से भी बड़ा, दुनिया में इन्सान ।
चारों तरफ़ मची यहाँ भारी रेलमपेल ।
चोर उचक्के ख़ुश बहुत, सज्जन काटें जेल ।
मतलब की सब दोस्ती देख लिया सौ बार ।
काम बनाकर हो गया, जिगरी दोस्त फ़रार ।
तेरे करने से नहीं, होगा बेड़ा पार ।
करने वाला तो यहाँ, हैं केवल करतार ।
कर सकते हो तो करो, आत्मा से अनुराग ।
यही सीख देता हमें, गौतम का गृह-त्याग ।
– रमानाथ अवस्थी
रमानाथ अवस्थी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ
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बजी कहीं शहनाई सारी रात
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करूँ क्या
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वे दिन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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उस समय भी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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बुलावा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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ऐसी तो कोई बात नहीं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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सौ बातों की एक बात है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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हम-तुम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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जिसे कुछ नहीं चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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वह एक दर्पण चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
Kaam nikal kar ho gya jigri dost faraar… behad sateek
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