रोको मत जाने दो जाना है दूर
वैसे तो जाने को मन ही होता नहीं,
लेकिन है कौन यहाँ जो कुछ खोता नहीं
तुमसे मिलने का मन तो है मैं क्या करूँ?
बोलो तुम कैसे कब तक मैं धीरज धरूँ ।
मुझसे मत पूछो मैं कितना मज़बूर ।
रोको मत जाने दो जाना है दूर
अनगिन चिंताओं के साथ खड़ा हूँ यहाँ
पूछता नहीं कोई जाऊँगा मैं कहाँ ?
तन की क्या बात मन बेहद सैलानी है
कर नहीं पाता मन अपनी मनमानी है ।
दर्द भी सहे हैं हो कर के मशहूर
रोको मत जाने दो जाना है दूर
अब नहीं कुछ भी पाने को मन करता
कभी-कभी जीवन भी मुझको अखरता
साँस का ठिकाना क्या आए न आए
यह बात कौन किसे कैसे समझाए
होना है जो भी वह होगा ज़रूर ।
रोको मत जाने दो जाना है दूर ।
– रमानाथ अवस्थी
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