जाना है दूर – रमानाथ अवस्थी

रोको मत जाने दो जाना है दूर

वैसे तो जाने को मन ही होता नहीं,
लेकिन है कौन यहाँ जो कुछ खोता नहीं
तुमसे मिलने का मन तो है मैं क्या करूँ?
बोलो तुम कैसे कब तक मैं धीरज धरूँ ।
मुझसे मत पूछो मैं कितना मज़बूर ।

रोको मत जाने दो जाना है दूर

अनगिन चिंताओं के साथ खड़ा हूँ यहाँ
पूछता नहीं कोई जाऊँगा मैं कहाँ ?
तन की क्या बात मन बेहद सैलानी है
कर नहीं पाता मन अपनी मनमानी है ।
दर्द भी सहे हैं हो कर के मशहूर

रोको मत जाने दो जाना है दूर

अब नहीं कुछ भी पाने को मन करता
कभी-कभी जीवन भी मुझको अखरता
साँस का ठिकाना क्या आए न आए
यह बात कौन किसे कैसे समझाए
होना है जो भी वह होगा ज़रूर ।

रोको मत जाने दो जाना है दूर ।

                                          –  रमानाथ अवस्थी

रमानाथ अवस्थी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ

  • बजी कहीं शहनाई सारी रात

  • करूँ क्या

  • वे दिन (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • उस समय भी (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • बुलावा (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • ऐसी तो कोई बात नहीं (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • सौ बातों की एक बात है (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • हम-तुम (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • मेरी रचना के अर्थ (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • मन चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • सदा बरसने वाला मेघ (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • मेरे पंख कट गए हैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • सो न सका (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • लाचारी (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • अंधेरे का सफ़र (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • याद बन-बनकर गगन पर (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • असम्भव (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • इन्सान (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • कभी कभी (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • चंदन गंध (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • चुप रहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • मन (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • रात की बात (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • जाना है दूर (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • जिसे कुछ नहीं चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • वह आग न जलने देना (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • याद तुम्हारी आई सारी रात (शीघ्र प्रकाशित होगी)

  • वह एक दर्पण चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)

 

हिंदी ई-बुक्स (Hindi eBooks)static_728x90

 

Leave a comment