मुझे नहीं पता – कुमार शान्तनु

ये जो बतियाँ जग रही है राहों पर
ये रौशनी दे रही है या अँधेरा
मुझे नहीं पता

मैं सुन तो रहा हूँ
पर कौन क्या कह रहा है
मुझे नहीं पता

यूँ तो तेरे होने का एहसास भी है
पर तू है भी या नहीं
मुझे नहीं पता

मैं पढ़ तो रहा हूँ ख़बर अपनी
पर मैं सुर्ख़ियो में हूँ या इश्तेहार में
मुझे नहीं पता

मैं अपने अंदर हूँ या बाहर हूँ
मैं अँधा हूँ या प्यार हूँ
मुझे नहीं पता

ये जो बतियाँ जग रही है राहों पर
ये रौशनी दे रही है या अँधेरा
मुझे नहीं पता