दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल! स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें, मीड़, सब भू की शिरायें, गा रहे आंधी-प्रलय तेरे लिये ही आज मंगल
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तितली से – महादेवी वर्मा
मेह बरसने वाला है मेरी खिड़की में आ जा तितली। बाहर जब पर होंगे गीले, धुल जाएँगे रंग सजीले, झड़ जाएगा फूल, न तुझको बचा सकेगा छोटी तितली, खिड़की में तू आ जा तितली!
ठाकुर जी भोले हैं – महादेवी वर्मा
ठंडे पानी से नहलातीं, ठंडा चंदन इन्हें लगातीं, इनका भोग हमें दे जातीं, फिर भी कभी नहीं बोले हैं। माँ के ठाकुर जी भोले हैं।
कोयल – महादेवी वर्मा
डाल हिलाकर आम बुलाता तब कोयल आती है। नहीं चाहिए इसको तबला, नहीं चाहिए हारमोनियम, छिप-छिपकर पत्तों में यह तो गीत नया गाती है!
अलि अब सपने की बात – महादेवी वर्मा
अलि अब सपने की बात- हो गया है वह मधु का प्रात! जब मुरली का मृदु पंचम स्वर, कर जाता मन पुलकित अस्थिर, कम्पित हो उठता सुख से भर, नव लतिका सा गात!
वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की – महादेवी वर्मा
वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में! झंझा की पहली नीरवता- सी नीरव मेरी साधें, भर देंगी उन्माद प्रलय का मानस की लघु कम्पन में!
क्यों इन तारों को उलझाते? – महादेवी वर्मा
क्यों इन तारों को उलझाते? अनजाने ही प्राणों में क्यों आ आ कर फिर जाते? पल में रागों को झंकृत कर, फिर विराग का अस्फुट स्वर भर, मेरी लघु जीवन वीणा पर क्या यह अस्फुट गाते?
जो मुखरित कर जाती थीं – महादेवी वर्मा
जो मुखरित कर जाती थीं मेरा नीरव आवाहन, मैं नें दुर्बल प्राणों की वह आज सुला दी कंपन! थिरकन अपनी पुतली की भारी पलकों में बाँधी निस्पंद पड़ी हैं आँखें बरसाने वाली आँधी!
मै अनंत पथ में लिखती जो – महादेवी वर्मा
मै अनंत पथ में लिखती जो सस्मित सपनों की बाते उनको कभी न धो पायेंगी अपने आँसू से रातें! उड़् उड़ कर जो धूल करेगी मेघों का नभ में अभिषेक अमिट रहेगी उसके अंचल- में मेरी पीड़ा की रेख!
मेरा सजल मुख देख लेते! – महादेवी वर्मा
मेरा सजल मुख देख लेते! यह करुण मुख देख लेता! सेतु शूलों का बना बाँधा विरह-वारीश का जल फूल की पलकें बनाकर प्यालियाँ बाँटा हलाहल!

