कोई पार नदी के गाता – हरिवंशराय बच्चन

कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर, ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता! कोई पार नदी के गाता!

कहते हैं तारे गाते हैं – हरिवंशराय बच्चन

सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमनें कान लगाया, फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं कहते हैं तारे गाते हैं स्वर्ग सुना करता यह गाना, पृथ्वी ने तो बस यह जाना, अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आंसू आते हैं कहते हैं तारे गाते हैं

जुगनू – हरिवंशराय बच्चन

अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? उठी ऐसी घटा नभ में छिपे सब चांद औ' तारे, उठा तूफान वह नभ में गए बुझ दीप भी सारे,

साथी, सब कुछ सहना होगा! – हरिवंशराय बच्चन

साथी, सब कुछ सहना होगा! मानव पर जगती का शासन, जगती पर संसृति का बंधन, संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा! साथी, सब कुछ सहना होगा!

को‌ई गाता मैं सो जाता – हरिवंशराय बच्चन

संस्रिति के विस्तृत सागर में सपनो की नौका के अंदर दुख सुख कि लहरों मे उठ गिर बहता जाता, मैं सो जाता । आँखों में भरकर प्यार अमर आशीष हथेली में भरकर को‌ई मेरा सिर गोदी में रख सहलाता, मैं सो जाता ।

किस कर में यह वीणा धर दूँ? – हरिवंशराय बच्चन

देवों ने था जिसे बनाया, देवों ने था जिसे बजाया, मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ?

कवि की वासना – हरिवंशराय बच्चन

कह रहा जग वासनामय  हो रहा उद्गार मेरा! 1.  सृष्टि के प्रारंभ में  मैने उषा के गाल चूमे, बाल रवि के भाग्य वाले  दीप्त भाल विशाल चूमे,  प्रथम संध्या के अरुण दृग  चूम कर मैने सुला‌ए,  तारिका-कलि से सुसज्जित  नव निशा के बाल चूमे,  वायु के रसमय अधर  पहले सके छू होठ मेरे मृत्तिका की पुतलियो से  आज क्या अभिसार मेरा?  कह रहा जग वासनामय  हो रहा उद्गार मेरा!

जाओ कल्पित साथी मन के – हरिवंशराय बच्चन

जाओ कल्पित साथी मन के! जब नयनों में सूनापन था, जर्जर तन था, जर्जर मन था, तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के! जाओ कल्पित साथी मन के

इस पार उस पार – हरिवंशराय बच्चन

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब – हरिवंशराय बच्चन

गुलाब तू बदरंग हो गया है बदरूप हो गया है झुक गया है तेरा मुंह चुचुक गया है तू चुक गया है । ऐसा तुझे देख कर मेरा मन डरता है फूल इतना डरावाना हो कर मरता है!