आराधना – सुभद्रा कुमारी चौहान

जब मैं आँगन में पहुँची,  पूजा का थाल सजाए। शिवजी की तरह दिखे वे,  बैठे थे ध्यान लगाए॥ जिन चरणों के पूजन को  यह हृदय विकल हो जाता। मैं समझ न पाई, वह भी  है किसका ध्यान लगाता?

अनोखा दान – सुभद्रा कुमारी चौहान

अपने बिखरे भावों का मैं  गूँथ अटपटा सा यह हार। चली चढ़ाने उन चरणों पर,  अपने हिय का संचित प्यार॥ डर था कहीं उपस्थिति मेरी,  उनकी कुछ घड़ियाँ बहुमूल्य नष्ट न कर दे, फिर क्या होगा  मेरे इन भावों का मूल्य?

झाँसी की रानी – सुभद्रा कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बचपन – सुभद्रा कुमारी चौहान

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥