अज़ मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना – मिर्ज़ा ग़ालिब

अज़ मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना  तूती को शश जिहत से मुक़ाबिल है आइना

कहूँ जो हाल, तो कहते हो – मिर्ज़ा ग़ालिब

कहूं जो हाल तो कहते हो 'मुद्द`आ कहिये' तुम्हीं कहो कि जो तुम यूं कहो तो क्या कहिये न कहियो त`न से फिर तुम कि हम सितमगर हैं मुझे तो ख़ू है कि जो कुछ कहो बजा कहिये

ये न थी हमारी क़िस्मत – मिर्ज़ा ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता   तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी – मिर्ज़ा ग़ालिब

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी के हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले निकलना खुळ से आदम का सुनते आये हैं लेकिन बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

दिया है दिल – मिर्ज़ा ग़ालिब

दिया है दिल अगर उस को , बशर है क्या कहिये हुआ रक़ीब तो वो , नामाबर है , क्या कहिये यह ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे काजा से शिकवा हमें किस क़दर है , क्या कहिये

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा – मिर्ज़ा ग़ालिब

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा जाता हूँ दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती लिये हुए हूँ शम्मा-ए-कुश्ता दरख़ुर-ए-महफ़िल नहीं रहा

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है – मिर्ज़ा ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है? तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-ग़ुफ़्तगू क्या है?

दिल ही तो है – मिर्ज़ा ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़ीश्त दर्द से भर न आये क्यूँ रोयेंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यूँ

यूँ होता तो क्या होता – मिर्ज़ा ग़ालिब

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !

आमों की तारीफ़ में – मिर्ज़ा ग़ालिब

हाँ दिल-ए-दर्दमंद ज़म-ज़मा साज़ क्यूँ न खोले दर-ए-ख़ज़िना-ए-राज़ ख़ामे का सफ़्हे पर रवाँ होना शाख़-ए-गुल का है गुल-फ़िशाँ होना