मैं नीर भरी दु:ख की बदली! स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रन्दन में आहत विश्व हंसा, नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झरिणी मचली!
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जाने किस जीवन की सुधि ले – महादेवी वर्मा
जाने किस जीवन की सुधि ले लहराती आती मधु-बयार! रंजित कर ले यह शिथिल चरण, ले नव अशोक का अरुण राग, मेरे मण्डन को आज मधुर, ला रजनीगन्धा का पराग; यूथी की मीलित कलियों से अलि, दे मेरी कबरी सँवार।
मधुर-मधुर मेरे दीपक – महादेवी वर्मा
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
बया हमारी चिड़िया रानी – महादेवी वर्मा
तिनके लाकर महल बनाती, ऊँची डाली पर लटकाती, खेतों से फिर दाना लाती, नदियों से भर लाती पानी। तुझको दूर न जाने देंगे, दानों से आँगन भर देंगे, और हौज़ में भर देंगे हम- मीठा-मीठा ठंडा पानी।
मिटने का अधिकार – महादेवी वर्मा
वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुरझाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना!
कौन तुम मेरे हृदय में ? – महादेवी वर्मा
कौन तुम मेरे हृदय में? कौन मेरी कसक में नित मधुरता भरता अलक्षित? कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता अपरिचित?
जो तुम आ जाते एक बार – महादेवी वर्मा
जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग
मन्दिर का दीप – महादेवी वर्मा
पूछता क्यों शेष कितनी रात? छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!
पूछता क्यों शेष कितनी रात? – महादेवी वर्मा
पूछता क्यों शेष कितनी रात? छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!
जब यह दीप थके – महादेवी वर्मा
यह चंचल सपने भोले है, दृग-जल पर पाले मैने, मृदु पलकों पर तोले हैं; दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!




