नागाधिराज श्रृंग पर खडी हुई, समुद्र की तरंग पर अडी हुई, स्वदेश में जगह-जगह गडी हुई, अटल ध्वजा हरी,सफेद केसरी!
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पतझड़ की शाम – हरिवंशराय बच्चन
है यह पतझड़ की शाम, सखे ! नीलम-से पल्लव टूट गए, मरकत-से साथी छूट गए, अटके फिर भी दो पीत पात जीवन-डाली को थाम, सखे ! है यह पतझड़ की शाम, सखे !
चिडिया और चुरूंगुन – हरिवंशराय बच्चन
छोड़ घोंसला बाहर आया, देखी डालें, देखे पात, और सुनी जो पत्ते हिलमिल, करते हैं आपस में बात;- माँ, क्या मुझको उड़ना आया? 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
लहर सागर का नहीं श्रृंगार – हरिवंशराय बच्चन
लहर सागर का नहीं श्रृंगार, उसकी विकलता है; अनिल अम्बर का नहीं खिलवार उसकी विकलता है; विविध रूपों में हुआ साकार, रंगो में सुरंजित, मृत्तिका का यह नहीं संसार, उसकी विकलता है।
गीत मेरे – हरिवंशराय बच्चन
गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन। एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ, वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ, छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन, गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन।
साथी, साँझ लगी अब होने! – हरिवंशराय बच्चन
फैलाया था जिन्हें गगन में, विस्तृत वसुधा के कण-कण में, उन किरणों के अस्ताचल पर पहुँच लगा है सूर्य सँजोने! साथी, साँझ लगी अब होने!
मेघदूत के प्रति – हरिवंशराय बच्चन
"मेघ" जिस जिस काल पढ़ता, मैं स्वयं बन मेघ जाता! हो धरणि चाहे शरद की चाँदनी में स्नान करती, वायु ऋतु हेमंत की चाहे गगन में हो विचरती,
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली – हरिवंशराय बच्चन
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने। फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में और चारों ओर दुनिया सो रही थी, तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी, मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
दुनिया का इतिहास पूछता – अटल बिहारी वाजपेयी
दुनिया का इतिहास पूछता, रोम कहाँ, यूनान कहाँ? घर-घर में शुभ अग्नि जलाता। वह उन्नत ईरान कहाँ है? दीप बुझे पश्चिमी गगन के, व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा, किन्तु चीर कर तम की छाती,
मैं अखिल विश्व का गुरू महान – अटल बिहारी वाजपेयी
मैं अखिल विश्व का गुरू महान, देता विद्या का अमर दान, मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान। मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर



