एक नन्हा दीपक – सोमिल जैन ‘सोमू’

इन काली काली रातों में,एक नन्हा दीपक जलता है। मगर अफ़सोस वो बेजुबाँ,क्यों बिखरा बिखरा रहता है,क्यों उखड़ा उखड़ा रहता है। इन गम के तुफानो में,कंही महफूज पलता है। सांसे न रुक जाएँ कभी,लहरों से बचकर छिपता है,लहरों से बचकर जलता है।         इन काली काली..........

हर युग को अपना ‘राम’ चाहिए – अनिल कुमार सिंह

हर युग को अपना 'राम' चाहिए - अनिल कुमार सिंह

दो गज – विकास कुमार

कब ये दुनिया पलट जाये कब ये ताज बेताज हो जाये हुकूमत रहती नहीं हमेशा चन्द साँसों की ये दुनिया है मोहताज कुछ ख्वाबों की आबादी बढ़ न सकेगी जमीं पर संसाधनों के पार, हुक्मरानों की पाबंदी है प्रकृती के ख़ज़ानों पर,

इरेज़र – प्रिया आर्य “दीवानी’

चीजो की कीमत नहीं होती वक़्त उनकी कीमत तय करता  है। गमो का खजाना है ,मेरे पास देखे कितने दाम में अब ये बिकता है। इस दौर में ख़रीदलो तुम मुझको भी पर जो है ही नहीं , देखें हम भी कैसे बिकता है।

सवालों  की  घुटन – रुचिका मान ‘रूह’

क्या लौट आना चाहते हो? इस ख़याल से कि ठहरी हुई सी रूह मिलेगी सब बिसरा कर वहीं जमी हुई अविरल , अचल, अभंग- नभमंडल बन.... दृढ़, स्थिर, अक्षीण-  तुम्हारी बाट में?

हम बोलते नहीं – विकास कुमार

अब ये किसने कहा हम बोलते नहीं सहाब तुम प्यार तो करो  हम बोलेंगे भी, तोड़ेंगे भी समाज को भी, कौमी एकता को भी और हड्डियों को भी तुम नहीं जानते हमारी भावनाएं

रक़ीब के नाम – रुचिका मान ‘रूह’

वो...जिसने  बड़ी नवाज़िश से मेरी सियाह रातों पे एहसान किया था और बड़े नाज़ों से मेरी बेपनाह वफ़ा का पैमाँ लिया था जो...नज़ाकत से मेरी रूह को फना कर गया  और नाहक ही मेरे इश्क़ को गुनाह कर गया वो...मेरी ज़ीस्त कि हकीकत मेरी साँसों की  कैफियत

ख़ुश हैं सब – राज़िक अंसारी

बतलाते हैं सारे मंज़र ख़ुश हैं सब अन्दर से है टूटे बाहर ख़ुश हैं सब देख लो अपनी प्यास छुपाने का अंजाम बोल रहा है एक समन्दर ख़ुश हैं सब

वाक़िफ़ हैं – राज़िक अंसारी

दिल की रंगीनियों से वाक़िफ़ हैं  फूल हैं, तितलियों से वाक़िफ़ हैं  आंधिओं की हंसी उड़ाएंगे जो हमारे दियों से वाक़िफ़ हैं 

चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं – राज़िक अंसारी

चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं जहां पर सब बराबर बैठते हैं न जाने क्यों घुटन सी हो रही है बदन से चल के बाहर बैठते हैं