कविता और विचार के अन्त: सम्बन्धों पर चर्चा करते हुए अक्सर इस बात की अनदेखी की जाती रही है कि कविता किसी विचार की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति अथवा स्थिति का संवेदनात्मक वर्णन नहीं बल्कि अपने में एक चिन्तन-विधि है
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मन विचरण करता रहता है – ज्ञान प्रकाश सिंह
ऐसे ही विचरण करता मन पहुँच गया क्रीड़ास्थल पर, ऋषिमा जहाँ खेलने आती , अपनी मम्मी को संग लेकर । साधन वहाँ प्रतिस्थापित थे मन बहलाने हेतु अनेक किन्तु अनूठा दिखलाई , पड़ता था उनमें से एक । वह था एक अचेतन लेकिन , होता प्रतीत चेतन युक्त लहराता दोनों हाथों को मानो करता सबका … Continue reading मन विचरण करता रहता है – ज्ञान प्रकाश सिंह
मैं क्या क्या छोड़ आया हूँ – ज्ञान प्रकाश सिंह
क्लब के सामने ऋषिमा ने, जहाँ फ़ोटो खिंचाया था गमकते लहलहाते फूलों की क्यारी छोड़ आया हूँ । पैदल रास्ते पर रुक कर, जिसे ऋषिमा दिखाती थी पक्की सड़क के मोड़ पर, उस ‘जे’ को छोड़ आया हूँ । जिनकी ओट से बच्चे ने, हाइड-सीक खेला था बार-बी-क्यू के पास, … Continue reading मैं क्या क्या छोड़ आया हूँ – ज्ञान प्रकाश सिंह
सब याद है मुझको अब भी… – ज्ञान प्रकाश सिंह
ऋषिमा अब उस पते पर नहीं रहती किंतु सब याद है मुझको अब भी । फ़्लैट की बाल्कनी में खड़ी हो मेरे साथ जब भी , आते पवन के तेज़ झोंकों को ऊँचे स्वर में रुक जाने को कहती थी और जब तेज़ बारिश हो उसे जाने को कहती थी । ‘स्टॉप विंड , स्टॉप … Continue reading सब याद है मुझको अब भी… – ज्ञान प्रकाश सिंह

