रक़ीब के नाम – रुचिका मान ‘रूह’

वो...जिसने  बड़ी नवाज़िश से मेरी सियाह रातों पे एहसान किया था और बड़े नाज़ों से मेरी बेपनाह वफ़ा का पैमाँ लिया था जो...नज़ाकत से मेरी रूह को फना कर गया  और नाहक ही मेरे इश्क़ को गुनाह कर गया वो...मेरी ज़ीस्त कि हकीकत मेरी साँसों की  कैफियत

ख़ुश हैं सब – राज़िक अंसारी

बतलाते हैं सारे मंज़र ख़ुश हैं सब अन्दर से है टूटे बाहर ख़ुश हैं सब देख लो अपनी प्यास छुपाने का अंजाम बोल रहा है एक समन्दर ख़ुश हैं सब

वाक़िफ़ हैं – राज़िक अंसारी

दिल की रंगीनियों से वाक़िफ़ हैं  फूल हैं, तितलियों से वाक़िफ़ हैं  आंधिओं की हंसी उड़ाएंगे जो हमारे दियों से वाक़िफ़ हैं 

चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं – राज़िक अंसारी

चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं जहां पर सब बराबर बैठते हैं न जाने क्यों घुटन सी हो रही है बदन से चल के बाहर बैठते हैं

मैं कवी हूँ – विकास कुमार

मैं कवी हूँ मैं तुमको हमेशा ताली बजाने के लिए नहीं कहूंगा, और ना ही मैं तुमको हसाऊंगा । ना ही कविता का काफिया मिलाऊँगा । आज में बस शब्दों को एकता की माला में   पिरोऊंगा , आज जो तुम्हारे कृत्य  हैं उसमें हास्य कहाँ उसमें ताली बजाने की गुंजाइश  कहाँ ,

चीज़ों की क़ीमत – प्रिया आर्य “दीवानी’

चीजो की कीमत नहीं होती वक़्त उनकी कीमत तय करता  है। गमो का खजाना है ,मेरे पास देखे कितने दाम में अब ये बिकता है। इस दौर में ख़रीदलो तुम मुझको भी पर जो है ही नहीं , देखें हम भी कैसे बिकता है।

 इंतज़ार – रुचिका मान ‘रूह’ (अतिथि लेखक)

क्या लौट आना चाहते हो? इस ख़याल से कि ठहरी हुई सी रूह मिलेगी सब बिसरा कर वहीं जमी हुई अविरल , अचल, अभंग- नभमंडल बन.... दृढ़, स्थिर, अक्षीण-  तुम्हारी बाट में?

लड़ते देखता हूं – राज़िक अंसारी

मैं जब रिश्तों को लड़ते देखता हूं हवेली को उजड़ते देखता हूँ न जाने क्यों मुझे लगता है , मैं हूँ किसी को जब बिछड़ते देखता हूँ

दिल – राज़िक अंसारी

एक नन्हा मुन्ना बच्चा यही कोई 8-10 साल का फटा हुआ लिबास या यूं कहो पहनने के नाम पर बस चिथड़ा खींचता जा रहा है एक गाड़ी, बिना इंजन की, सही समझे-छकड़ा

बजट – विकास कुमार

एक नन्हा मुन्ना बच्चा यही कोई 8-10 साल का फटा हुआ लिबास या यूं कहो पहनने के नाम पर बस चिथड़ा खींचता जा रहा है एक गाड़ी, बिना इंजन की, सही समझे-छकड़ा