प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए – कुमार विश्वास

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए, ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाए, घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले, अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले, लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए, भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाए,

पवन ने कहा – कुमार विश्वास

पवन ने कहा सौंप दो मुझे अपना सब सत्व तमस व रजत चाहती हूँ मैं स्वयं से जोड़ना तुमको यही होगी गति उत्तम शब्द सार्थक नियति उत्तम किन्तु मुझे करना

नेह के सन्दर्भ बौने हो गए – कुमार विश्वास

नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर, फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं, शक्ति के संकल्प बोझिल हो गये होंगे मगर, फिर भी तुम्हारे चरण मेरी कामनायें हैं, हर तरफ है भीड़ ध्वनियाँ और चेहरे हैं अनेकों, तुम अकेले भी नहीं हो, मैं अकेला भी नहीं हूँ 

देवदास मत होना – कुमार विश्वास

खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना देखना, चाहना, फिर माँगना, या खो देना ये सारे खेल हैं, इनमें उदास मत होना जो भी तुम चाहो, फ़क़त चाहने से मिल जाए ख़ास तो होना, पर इतने भी ख़ास मत होना

दुःखी मत हो – कुमार विश्वास

सार्त्र! तुम्हें आदमी के अस्तित्व की चिंता है न? दुःखी मत हो दार्शनिक मैं तुम्हें सुझाता हूँ क्षणों को पूरे आत्मबोध के साथ जीते हुए आदमज़ाद की सही तस्वीर दिखाता हूँ- भागती ट्रामों दौड़ती कारों

तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा – कुमार विश्वास

ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही! ओ अमलताश की अमलकली! धरती के आतप से जलते... मन पर छाई निर्मल बदली... मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा| तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा|

तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है – कुमार विश्वास

तुम्हें जीने में आसानी बहुत है तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है ज़हर-सूली ने गाली-गोलियों ने  हमारी जात पहचानी बहुत है कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे  तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे – कुमार विश्वास

कुछ छोटे सपनों की ख़ातिर बड़ी नींद का सौदा करने निकल पड़े हैं पाँव अभागे जाने कौन नगर ठहरेंगे वही प्यास के अनगढ़ मोती वही धूप की सुर्ख़ कहानी वही ऑंख में घुट कर मरती ऑंसू की ख़ुद्दार जवानी हर मोहरे की मूक विवशता चौसर के खाने क्या जानें हार-जीत ये तय करती है आज कौन-से घर ठहरेंगे

जाने कौन नगर ठहरेंगे – कुमार विश्वास

कुछ छोटे सपनों की ख़ातिर बड़ी नींद का सौदा करने निकल पड़े हैं पाँव अभागे जाने कौन नगर ठहरेंगे वही प्यास के अनगढ़ मोती वही धूप की सुर्ख़ कहानी वही ऑंख में घुट कर मरती ऑंसू की ख़ुद्दार जवानी हर मोहरे की मूक विवशता चौसर के खाने क्या जानें हार-जीत ये तय करती है आज कौन-से घर ठहरेंगे

जब भी मुँह ढक लेता हूँ – कुमार विश्वास

जब भी मुँह ढक लेता हूँ तेरे जुल्फों के छाँव में कितने गीत उतर आते है मेरे मन के गाँव में एक गीत पलकों पर लिखना एक गीत होंठो पर लिखना यानि सारी गीत हृदय की मीठी-सी चोटों पर लिखना जैसे चुभ जाता है कोई काँटा नँगे पाँव में ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में