देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।
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आँख का आँसू – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
आँख का आँसू ढलकता देख कर। जी तड़प करके हमारा रह गया। क्या गया मोती किसी का है बिखर। या हुआ पैदा रतन कोई नया। ओस की बूँदें कमल से हैं कढ़ी। या उगलती बूँद हैं दो मछलियाँ। या अनूठी गोलियाँ चाँदी मढ़ी। खेलती हैं खंजनों की लड़कियाँ।
फूल और काँटा – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
हैं जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता। है खटकता एक सबकी आँख में दूसरा है सोहता सुर शीश पर, किस तरह कुल की बड़ाई काम दे जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।
कोयल – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
काली-काली कू-कू करती, जो है डाली-डाली फिरती! कुछ अपनी हीं धुन में ऐंठी छिपी हरे पत्तों में बैठी जो पंचम सुर में गाती है वह हीं कोयल कहलाती है. जब जाड़ा कम हो जाता है सूरज थोड़ा गरमाता है
मीठी बोली – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
बस में जिससे हो जाते हैं प्राणी सारे। जन जिससे बन जाते हैं आँखों के तारे। पत्थर को पिघलाकर मोम बनानेवाली मुख खोलो तो मीठी बोली बोलो प्यारे।। रगड़ो, झगड़ो का कडुवापन खोनेवाली। जी में लगी हुई काई को धानेवाली। सदा जोड़ देनेवाली जो टूटा नाता मीठी बोली प्यार बीज है बोनेवाली।। काँटों में भी सुंदर फूल खिलानेवाली।
आ री नींद – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
आ री नींद, लाल को आ जा। उसको करके प्यार सुला जा।। तुझे लाल हैं ललक बुलाते। अपनी आँखों पर बिठलाते।। तेरे लिए बिछाई पलकें। बढ़ती ही जाती हैं ललकें।। क्यों तू है इतनी इठलाती। आ-आ मैं हूँ तुझे बुलाती।। गोद नींद की है अति प्यारी। फूलों से है सजी-सँवारी।।
चमकीले तारे – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
क्या चमकीले तारे हैं, बड़े अनूठे, प्यारे हैं! आँखों में बस जाते हैं, जी को बहुत लुभाते हैं! जगमग-जगमग करते हैं,
चूँ-चूँ चूँ-चूँ चूहा बोले – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
चूँ-चूँ चूँ-चूँ चूहा बोले, म्याऊँ म्याऊँ बिल्ली। ती-ती, ती-ती कीरा बोले, झीं-झीं झीं-झीं झिल्ली।
चंदा मामा – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
चंदा मामा दौड़े आओ, दूध कटोरा भर कर लाओ। उसे प्यार से मुझे पिलाओ, मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ।
बंदर और मदारी – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
देखो लड़को, बंदर आया, एक मदारी उसको लाया। उसका है कुछ ढंग निराला, कानों में पहने है बाला। फटे-पुराने रंग-बिरंगे कपड़े हैं उसके बेढंगे। मुँह डरावना आँखें छोटी, लंबी दुम थोड़ी-सी मोटी।


