ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? – कुमार विश्वास

ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? ढेर सी चमक-चहक चेहरे पे लटकाए हुए हंसी को बेचकर बेमोल वक़्त के हाथों शाम तक उन ही थक़ानो में लौटने के लिए ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?

मौसम के गाँव – कुमार विश्वास

बहुत देर से सोकर जागी दिशा-वधू मौसम के गाँव अतः डरी लज्जित-सी पहुँची छूने दिवस-पिया के पाँव! आँखों वाली क्षितिज-रेख पर काला-सूरज उदित हुआ धरती का कर निज दुहिता के पाँव परस कर मुदित हुआ

मैं तो झोंका हूँ – कुमार विश्वास

मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊँगा जागती रहना, तुझे तुझसे चुरा ले जाऊँगा हो के क़दमों पर निछावर फूल ने बुत से कहा ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुश्बू बचा ले जाऊँगा कौन-सी शै तुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा

मैं तुम्हें ढूंढने – कुमार विश्वास

मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक रोज़ जाता रहा, रोज़ आता रहा तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा

मेरे सपनों के भाग में – कुमार विश्वास

कि जैसे दुनिया देखने की ज़िद के सही साँझ न होने पर पूरा, सो जाए मचल-मचल कर, रोता हुआ बच्चा! तो तैर आती हैं उस के सपनों में,

बाँसुरी चली आओ – कुमार विश्वास

तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है – कुमार विश्वास

महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है उनकी आँखों से होकर दिल तक जाना रस्ते में ये मैखाना तो पडता हैं तुमको पाने की चाहत में ख़तम हुए इश्क में इतना जुरमाना तो पड़ता हैं

बात करनी है, बात कौन करे – कुमार विश्वास

बात करनी है, बात कौन करे दर्द से दो-दो हाथ कौन करे हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं  चाँद ना हो तो रात कौन करे हम तुझे रब कहें या बुत समझें  इश्क में जात-पात कौन करे

फिर बसंत आना है – कुमार विश्वास

तुम समझ तो रही हो न, प्रीतो! वे सब बातें जो मैं इस सूने कमरे की दीवारों को समझा रहा हूँ आधी रात से

प्रीतो – कुमार विश्वास

तुम समझ तो रही हो न, प्रीतो! वे सब बातें जो मैं इस सूने कमरे की दीवारों को समझा रहा हूँ आधी रात से