कवि परिचय
हरिवंश राय श्रीवास्तव “बच्चन” (27 नवम्बर 1907 – 18 जनवरी 2003) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। ‘हालावाद’ के प्रवर्तक बच्चन जी हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। उनकी कृति दो चट्टाने को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था। बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
कविता संग्रह
तेरा हार (1929), मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), आत्म परिचय (1937), निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काव्य (1946), खादी के फूल (1948), सूत की माला (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962), दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967), कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969) और जाल समेटा (1973) |
काव्यशाला द्वारा प्रकाशित रचनाएँ
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मधुशाला
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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
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तीर पर कैसे रुकूँ मैं
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अग्निपथ
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जो बीत गयी सो बात गयी
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चल मरदाने
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हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
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कोई पार नदी के गाता
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क्या है मेरी बारी में
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लो दिन बीता लो रात गयी
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क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
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ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
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आत्मपरिचय
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मैं कल रात नहीं रोया था
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नीड का निर्माण
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त्राहि त्राहि कर उठता जीवन
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इतने मत उन्मत्त बनो
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स्वप्न था मेरा भयंकर
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तुम तूफान समझ पाओगे
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रात आधी खींच कर मेरी हथेली
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मेघदूत के प्रति
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साथी, साँझ लगी अब होने!
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गीत मेरे
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लहर सागर का श्रृंगार नहीं
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आ रही रवि की सवारी
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चिडिया और चुरूंगुन
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पतझड़ की शाम
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राष्ट्रिय ध्वज
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साजन आए, सावन आया
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प्रतीक्षा
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आदर्श प्रेम
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आज फिर से
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आत्मदीप
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बहुत दिनों पर
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एकांत-संगीत
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ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब
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इस पार उस पार
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जाओ कल्पित साथी मन के
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कवि की वासना
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किस कर में यह वीणा धर दूँ
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कोई गाता मैं सो जाता
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साथी, सब कुछ सहना होगा
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जुगनू
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कहते हैं तारे गाते हैं
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शहीद की माँ
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क़दम बढाने वाले
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कोई पार नदी के गाता
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क्या भूलूं क्या याद करूँ मैं
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मेरा संबल
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मुझसे चांद कहा करता है
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पथ की पहचान
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साथी साथ ना देगा दुख भी
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यात्रा और यात्री
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युग की उदासी
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आज मुझसे बोल बादल
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आज तुम मेरे लिये हो
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मनुष्य की मूर्ति
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उस पार न जाने क्या होगा
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रीढ़ की हड्डी
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हिंया नहीं कोऊ हमार!
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गर्म लोहा
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मौन और शब्द
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दो पीढियाँ
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क्यों जीता हूँ
- कौन मिलनातुर नहीं है ?
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क्यों पैदा किया था?
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क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी
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साथी सो ना कर कुछ बात
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तब रोक ना पाया मैं आंसू
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तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये
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है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है ?
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एक नया अनुभव
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जीवन का दिन बीत चुका था छाई थी जीवन की रात
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एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो
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टूटा हुआ इंसान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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हो गयी मौन बुलबुले-हिंद (शीघ्र प्रकाशित होगी)
हरिवंशराय बच्चन जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ
हरिवंशराय बच्चन जी पर अन्य रचनाएँ
डॉ हरिवंचराय बच्चन – नारायण सिंह रावत |
मधुशाला ऑडीओ सी.डी. – मन्ना डे |
Bachchan Recites Bachchan-Genius Of Hrb – Amitabh Bachchan |