इक्कीस दिन तक अब इन चारो, दीवारों से यारी है…
पहले चिड़ियों की बारी थी अब, इंसानों की बारी है…
हाथ मिलाना, गले लगाना, किसी जिस्म को छू लेना…
इश्क़ लड़ाना पड़ सकता अब, हम दोनों को भारी है…
एक वकत पे छत पर आके, थाली-चम्मच बजा रहे…
अब लगता है कि शहरों में, गाँव की रस्में जारी है…
तब कहते थे घर पे आओ, अब कहते है दूर रहो…
एक माह के अंदर बदली, सारी दुनियादारी है…
कुछ आदम की मौत हुई तो, सारी दुनिया चीख पड़ी…
याद करो कि हम लोगों ने, कितनी जाने मारी है…
भूल गए दफ़्तर के रास्ते, अब आँगन में बैठे गए…
‘सौरभ’ आँखों को बतलाओ, दुनिया कितनी प्यारी है…
चलचित्र रूपांतरण