केवल मन के चाहे से ही
मनचाही होती नहीं किसी की।
बिना चले कब कहाँ हुई है
मंज़िल पूरी यहाँ किसी की।।
पर्वत की चोटी छूने को
पर्वत पर चढ़ना पड़ता है।
सागर से मोती लाने को
गोता खाना ही पड़ता है।।
उद्यम किए बिना तो चींटी
भी अपना घर बना न पाती।
उद्यम किए बिना न सिंह को
भी अपना शिकार मिल पाता।।
इच्छा पूरी होती तब, जब
उसके साथ जुड़ा हो उद्यम।
प्राप्त सफलता करने का है,
‘मूल मंत्र’ उद्योग परिश्रम।।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा अन्य रचनाएँ
-
वीर तुम बढ़े चलो
-
उठो, धरा के अमर सपूतों
-
दीपक ( कविता संग्रह) (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
ज्योति किरण ( कविता संग्रह) (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
फूल और शूल ( कविता संग्रह) (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
शूल की सेज ( कविता संग्रह) (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
शंख और बाँसुरी ( कविता संग्रह) (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
सत्य की जीत (खंडकाव्य) (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्रौंच वध (खंडकाव्य) (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
माँ! यह वसंत ऋतुराज री! (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
पुनः नया निर्माण करो (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
इतने ऊँचे उठो
-
मूलमंत्र (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कौन सिखाता है चिडियों को (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
चंदा मामा, आ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हम सब सुमन एक उपवन के (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
यदि होता किन्नर नरेश मैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
उठो लाल अब आँखे खोलो (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मैं सुमन हूँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हम हैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
बिना सूई की घड़ियाँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मुन्ना-मुन्नी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
भालू आया (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हाथी हाथी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
यदि होता किन्नर नरेश मैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हम सब सुमन एक उपवन के (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
चल मेरी ढोलकी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
पूसी बिल्ली (शीघ्र प्रकाशित होगी)
शायरी ई-बुक्स ( Shayari eBooks)
