मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़शाँ[1] है हयात[2]
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर[3] का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम[4] में बहारों को सबात[5]
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ[6] हो जाये
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल[7] की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
अनगिनत सदियों के तारीक[8] बहिमाना[9] तलिस्म
रेशम-ओ-अतलस[10]-ओ-कमख़्वाब[11] में बुनवाये हुये
जा-ब-जा[12] बिकते हुये कूचा-ओ-बाज़ार[13] में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुये ख़ून में नहलाये हुये
जिस्म निकले हुये अमराज़[14] के तन्नूरों[15] से
पीप बहती हुई गलते हुये नासूरों[16] से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मग़र क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
शब्दार्थ : 1. रौशन, 2. ज़िंदगी , 3. दुनिया का ग़म , 4. दुनिया, ज़माना , 5. स्थिरता , 6. रास्ते पर, 7. मिलन , 8. अँधेरा , 9. निर्मम , 10. मुलायम कपड़ा, 11. बेशकीमती कपड़ा , 12. हर कहीं , 13. गली और बाज़ार , 14. बीमारियों , 15. भट्ठी , 16. ज़ख्म
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- ख़्वाब बसेरा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
- ख़त्म हुई बारिशे संग (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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