बतलाते हैं सारे मंज़र ख़ुश हैं सब
अन्दर से है टूटे बाहर ख़ुश हैं सब
देख लो अपनी प्यास छुपाने का अंजाम
बोल रहा है एक समन्दर ख़ुश हैं सब
ज़ख़्मों से दुख दर्द से लेना देना क्या
तोड़ के शीशा मार के पत्थर ख़ुश हैं सब
बाहर बाहर दुख मेरी बर्बादी का
मुझे पता है अन्दर अन्दर ख़ुश हैं सब
टूटी खटिया,बिस्तर, कपड़े कौन रखे
बांट के अपनी माँ के ज़ेवर ख़ुश हैं सब

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में रहने वाले राज़िक अंसारी जी पिछले 25 वर्षों से शायरी कर रहे हैं । शायरी पढ़ने और मुशायरे , कवि सम्मेलन सुनने का शोक़ बचपन से ही रहा । राहत इंदौरी और नूर इंदौरी साहब की मजलिस में बैठ कर बहुत कुछ सीखने को मिला । उस्ताद नसीर अंसारी साहब की सरपरस्ती में शेर कहने की शुरुआत की । आज तक सीखने का सिलसिला जारी है । इंदौर से प्रकाशित होने वाले संध्य दैनिक ” प्रभात किरण ” के लिए लगातार चार साल तक हर दिन एक कालम ” नावक के तीर ” लिखते रहे । जिसमे रोज़ एक ताज़ा मुक्तक आज के हालात या किसी घटना पर होता था । हमें आशा है की आपको उनकी रचनाएँ पसंद आएँगी ।
राज़िक अंसारी जी द्वारा लिखी अन्य रचनाएँ


मेरी तरह
LikeLiked by 1 person
हर दीवाने को सब दीवाने नज़र आते हैं, सबकी आँखों में पेमाने नज़र आते हैं
LikeLike
सही कहा
LikeLike