राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यौ – भूषण

भूषण राष्ट्रीय भावों के गायक है। उनकी वाणी पीड़ित प्रजा के प्रति एक अपूर्व आश्वसान हैं। इनका समय औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब के समय से मुगल वैभव व सत्ता की पकड़ कमजोर होती जा रही थी। औरंगजेब की कटुरता व हिन्दुओं के प्रति नफरत ने उसे जनता से दूर कर दिया था। संकट की इस घड़ी में भूषण ने दो राष्ट्रीय पुरूषों – शिवाजी व छत्रसाल के माध्यम से पूरे राष्ट्र में राष्ट्रीय भावना संचारित करने का प्रयास किया। भूषण ने तत्कालीन जनता की वाणी को अपनी कविताओं का आधार बनाया है। इन्होंने स्वदेशानुराग, संस्कृति अनुराग, साहित्य अनुराग, महापुरुषों के प्रति अनुराग, उत्साह आदि का वर्णन किया है। उस समय की एक कविता नीचे प्रस्तुत है।

 

राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यौ
अस्मृति पुरान राखे वेद धुन सुनी मैं
राखी रजपूती राजधानी राखी राजन की
धरा मे धरम राख्यौ ज्ञान गुन गुनी मैं
भूषन सुकवि जीति हद्द मरहट्टन की
देस देस कीरत बखानी सब सुनी मैं
साहि के सपूत सिवराज शमशीर तेरी
दिल्ली दल दाबि के दिवाल राखी दुनी मैं

– भूषण

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