आन पर जो मौत से मैदान लें, गोलियों के लक्ष्य पर उर तान लें। वीरसू चित्तौड़ गढ़ के वक्ष पर जुट गए वे शत्रु के जो प्राण लें॥
Tag: श्याम नारायण पांडेय
श्याम नारायण पाण्डेय (1907 – 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे। श्याम नारायण पाण्डेय का जन्म श्रावण कृष्ण पंचमी सम्वत् 1964, तदनुसार ईसवी सन् 1907 में ग्राम डुमराँव, मऊ, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ। आरम्भिक शिक्षा के बाद आप संस्कृत अध्ययन के लिए काशी चले आये। यहीं रहकर काशी विद्यापीठ से आपने हिन्दी में साहित्याचार्य किया। द्रुमगाँव (डुमराँव) में अपने घर पर रहते हुए ईसवी सन् 1991 में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। मृत्यु से तीन वर्ष पूर्व आकाशवाणी गोरखपुर में अभिलेखागार हेतु उनकी आवाज में उनके जीवन के संस्मरण रिकार्ड किये गये।
श्याम नारायण पाण्डेय जी ने चार उत्कृष्ट महाकाव्य रचे, जिनमें हल्दीघाटी (काव्य) सर्वाधिक लोकप्रिय और जौहर (काव्य) विशेष चर्चित हुए।
हल्दीघाटी में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन और जौहर में चित्तौड की रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। हल्दीघाटी के नाम से विख्यात राजस्थान की इस ऐतिहासिक वीर भूमि के लोकप्रिय नाम पर लिखे गये हल्दीघाटी महाकाव्य पर उनको उस समय का सर्वश्रेष्ठ सम्मान देव पुरस्कार प्राप्त हुआ था। अपनी ओजस्वी वाणी के कारण आप कवि सम्मेलन के मंचों पर अत्यधिक लोकप्रिय हुए। उनकी आवाज मरते दम तक चौरासी वर्ष की आयु में भी वैसी ही कड़कदार और प्रभावशाली बनी रही जैसी युवावस्था में थी।
उनका लिखा हुआ महाकाव्य जौहर भी अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। उन्होंने यह महाकाव्य चित्तौड की महारानी पद्मिनी के वीरांगना चरित्र को चित्रित करने के उद्देश्य को लेकर लिखा था।.
रचनाएँ – हल्दीघाटी, जौहर, तुमुल , रूपान्तर , आरती , जय-पराजय , गोरा-वध , जय हनुमान और शिवाजी (महाकाव्य)
जौहर : दरबार – श्याम नारायण पांडेय
अंधकार था घोर धरा पर अभय घूमते चोर धरा पर। चित्रित पंख मिला पंखों से सोए वन के मोर धरा पर॥
जौहर : आखेट – श्याम नारायण पांडेय
दोपहरी थी, ताप बढ़ा था, पूर्वजन्म का पाप बढ़ा था। जल – थल – नभ के शिर पर मानो, दुर्वासा का शाप चढ़ा था॥
जौहर : उन्माद – श्याम नारायण पांडेय
शीशमहल की दीवालों पर शोभित नंगी तसवीरें। चित्रकार ने लिखीं बेगमों की बहुरंगी तस्वीरें॥
जौहर : युद्ध – श्याम नारायण पांडेय
निशि चली जा रही थी काली प्राची में फैली थी लाली। विहगों के कलरव करने से, थी गूँज रही डाली डाली॥
जौहर : मंगलाचरन – श्याम नारायण पांडेय
शब्द में है अर्थ बनकर, अर्थ में है शब्द बनकर। जा रहे युग - कल्प उनमें, जा रहा है अब्द बनकर वहीं जा रहा पूजा करने , लेने सतियों की पग धूल, वहीँ हमारा दीप जलेगा , वहीँ चढ़ेगा माला फूल ||
जौहर : परिचय – श्याम नारायण पांडेय
जहां आन पर माँ बहनों ने , जौहर व्रत करना सीखा , स्वतंत्रता के लिए देश हित बच्चों ने मरना सीखा | वहीं जा रहा पूजा करने , लेने सतियों की पग धूल, वहीँ हमारा दीप जलेगा , वहीँ चढ़ेगा माला फूल ||

