एक दिन जब हम साथ न रहेंगे, और तुम्हे अनायास ही मेरा ख़याल आएगा, हताश मत होना. तुम मुझे वहीं पाओगे
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इस वतन के वास्ते – सोमिल जैन ‘सोमू’
जर जमीन एक करदी,इस वतन के वास्ते। खून से कस्तियाँ लिख दी,इस वतन के वास्ते। हँसते हँसते सूली चढ़ गये, इस वतन के वास्ते।
तेरी मेरी बातें – सोमिल जैन ‘सोमू’
तेरी मेरी बातें... चलो कुछ बात करते हैं चुप्पी को तोड़ते हैं दरमिया तेरे मेरे दिल की बातो को टटोलते हैं मोसम तो खुशनुमा है मगर ये सन्नाटा क्यों है तेरे मेरे बीच में कम्बक्त ये आता क्यों है चलो इस सन्नाटे को खोल लेते है चलो कुछ बोल लेते हैं।
मेरी कहानी – सोमिल जैन ‘सोमू’
पूछता हूँ ये समां से,पूछता हूँ ये अमां से। यदि फुर्सत हो तुम्हें तो,पूछता हूँ ये जमां से। क्या यही मेरी कहानी क्यों सजा आँखों में पानी... मैं भी था एक सुखी मानुष,थोड़ा चंचल बहुत ख्वाहिश। मिले सब संयोग मुझको,मगर ये क्या हुआ तुझको। एक दिन सब टूट बिखरा,अंधकारी सूर्य उखरा। छोड़ कर चल दिए मुझको ,सम्हालेगा कौन मुझको। आज हारा हूँ कभी में,जो न होता खेल खेला। पूछता हूँ हाथ मेरा,छोड़ क्यों छोड़ा अकेला। ले ली सबने साँस ठण्डी,भूलकर जलती कहानी। आग है उर में मेरे,क्यों सजा आँखों में पानी।
एक नन्हा दीपक – सोमिल जैन ‘सोमू’
इन काली काली रातों में,एक नन्हा दीपक जलता है। मगर अफ़सोस वो बेजुबाँ,क्यों बिखरा बिखरा रहता है,क्यों उखड़ा उखड़ा रहता है। इन गम के तुफानो में,कंही महफूज पलता है। सांसे न रुक जाएँ कभी,लहरों से बचकर छिपता है,लहरों से बचकर जलता है। इन काली काली..........
हर युग को अपना ‘राम’ चाहिए – अनिल कुमार सिंह
हर युग को अपना 'राम' चाहिए - अनिल कुमार सिंह
दो गज – विकास कुमार
कब ये दुनिया पलट जाये कब ये ताज बेताज हो जाये हुकूमत रहती नहीं हमेशा चन्द साँसों की ये दुनिया है मोहताज कुछ ख्वाबों की आबादी बढ़ न सकेगी जमीं पर संसाधनों के पार, हुक्मरानों की पाबंदी है प्रकृती के ख़ज़ानों पर,
इरेज़र – प्रिया आर्य “दीवानी’
चीजो की कीमत नहीं होती वक़्त उनकी कीमत तय करता है। गमो का खजाना है ,मेरे पास देखे कितने दाम में अब ये बिकता है। इस दौर में ख़रीदलो तुम मुझको भी पर जो है ही नहीं , देखें हम भी कैसे बिकता है।
सवालों की घुटन – रुचिका मान ‘रूह’
क्या लौट आना चाहते हो? इस ख़याल से कि ठहरी हुई सी रूह मिलेगी सब बिसरा कर वहीं जमी हुई अविरल , अचल, अभंग- नभमंडल बन.... दृढ़, स्थिर, अक्षीण- तुम्हारी बाट में?
हम बोलते नहीं – विकास कुमार
अब ये किसने कहा हम बोलते नहीं सहाब तुम प्यार तो करो हम बोलेंगे भी, तोड़ेंगे भी समाज को भी, कौमी एकता को भी और हड्डियों को भी तुम नहीं जानते हमारी भावनाएं










