छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? भूल अभी से इस जग को!
Tag: छायावाद
वसंत श्री – सुमित्रानंदन पंत
उस फैली हरियाली में, कौन अकेली खेल रही मा! वह अपनी वय-बाली में? सजा हृदय की थाली में
पल्लव – सुमित्रानंदन पंत
अरे! ये पल्लव-बाल! सजा सुमनों के सौरभ-हार गूँथते वे उपहार; अभी तो हैं ये नवल-प्रवाल, नहीं छूटो तरु-डाल;



