तुम सदा वे ही रहे जो पास मेरे ना रहा, कभी यादों की हुक तो, कभी अनछुआ सपना रहा | कैसे कहूं की विह्वल हूँ आज फिर किस के लिए ? ये जन्म भी कट जाएगा पहचान में तेरे प्रिये..
Category: बिकाश पाण्डेय
पेशे अभियंता, बिकाश पाण्डेय, ह्रदय से सर्वदा एक साहित्य प्रेमी रहे हैं , और एक बहुराष्ट्रीय संस्थान में अपनी अपेक्षित सेवाएँ प्रदान करने के बाद, जो भी समय बचता है, वह हिंदी, अँग्रेज़ी और बँगला के महान साहित्यकारों की रचनाओं के पठन-पाठन में लगाते हैं , और यही से यदा-कदा उन्हें भी लिखने की प्रेरणा मिल जाती है |
जन्म से ही, कोलकाता के नजदीक नैहाटी की उस पुण्य भूमि को अपना घर कहने का सौभाग्य मिला जो, ऋषि बन्किम चन्द्र चटर्जी और ‘वन्देमातरम’ [आनंद मठ] की भी जन्मभूमि है |
साहित्य से यह नाता , आठ वर्ष की आयु से ही जुड़ गया था, जब जनसत्ता (कलकत्ता) में पहली रचना का प्रकाशन हुआ था | उसके बाद से ये सम्बन्ध सतत बना रहा है, और कविताएँ कई हिंदी पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है | वैसे तो हिंदी, अँग्रेज़ी और बँगला तीनों भाषाओं में और कविता, लघु कथा, लेख एवं व्यंग्य जैसे कई विधाओं में लिखने का क्रम एवं प्रयास जारी है, परन्तु जो संतोष और आत्मविश्वास उन्हें हिंदी कविता से मिलता है वैसा अन्यत्र नहीं मिल पाता है |
उनकी हर कविता चीर अवस्थित मानवीय अनुभूतियों एवं भावनाओं का नूतन और मौलिक संकलन मात्र है, जो किसी अदृश्य सत्ता के माध्यम से उनकी कलम को अपने प्रकट्य का माध्यम बनाती हैं |
उनका सम्पूर्ण परिचय उनकी रचनाओं में मिलता है , क्योंकि यही वह माध्यम है, जो स्वयं उनसे उनका परिचय करवाते हैं | जीवन की आवश्यक बाध्यताओं से परे, ये उनके स्वयं से सत्य बोलने और जिरह करने के माध्यम है, (शायद इसलिए क्योंकि पृष्ठ प्रति उत्तर नहीं देते) और यही ‘सत्यवादिता’ उनकी कविताओं का एक मात्र बंधन है |