तुम हमारे हो – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया
ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते।
उठा तो पर न सँभलने पाया
गिरा व रह गया आँसू पीते।

ताब बेताब हु‌ई हठ भी हटी
नाम अभिमान का भी छोड़ दिया।
देखा तो थी माया की डोर कटी
सुना वह कहते हैं, हाँ खूब किया।

पर अहो पास छोड़ आते ही
वह सब भूत फिर सवार हु‌ए।
मुझे गफलत में ज़रा पाते ही
फिर वही पहले के से वार हु‌ए।

एक भी हाथ सँभाला न गया
और कमज़ोरों का बस क्या है।
कहा – निर्दय, कहाँ है तेरी दया,
मुझे दुख देने में जस क्या है।

रात को सोते यह सपना देखा
कि वह कहते हैं “तुम हमारे हो
भला अब तो मुझे अपना देखा,
कौन कहता है कि तुम हारे हो।

अब अगर को‌ई भी सताये तुम्हें
तो मेरी याद वहीं कर लेना
नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें
प्रेम के भाव तुरत भर लेना”।

–  सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

 सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ

  • दीन

  • मुक्ति

  • अट नहीं रही है

  • मौन

  • बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु

  • भिक्षुक

  • राजे ने अपनी रखवाली की

  • संध्या सुन्दरी

  • तुम हमारे हो

  • वर दे वीणावादिनी वर दे !

  • चुम्बन

  • प्राप्ति

  • भारती वन्दना

  • भर देते हो

  • ध्वनि

  • उक्ति

  • गहन है यह अंधकारा

  • शरण में जन, जननि

  • स्नेह-निर्झर बह गया है

  • मरा हूँ हज़ार मरण

  • पथ आंगन पर रखकर आई

  • आज प्रथम गाई पिक

  • मद भरे ये नलिन

  • भेद कुल खुल जाए

  • प्रिय यामिनी जागी

  • लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

  • पत्रोत्कंठित जीवन का विष

  • तोड़ती पत्थर

  • खुला आसमान

  • प्रियतम

  • वन बेला

  • टूटें सकल बन्ध

  • रँग गई पग-पग धन्य धरा

  • वे किसान की नयी बहू की आँखें

  • तुम और मैं

  • उत्साह

  • अध्यात्म फल (जब कड़ी मारें पड़ीं)

  • अट नहीं रही है

  • गीत गाने दो मुझे

  • प्रपात के प्रति

  • आज प्रथम गाई पिक पंचम

  • गर्म पकौड़ी

  • दलित जन पर करो करुणा

  • कुत्ता भौंकने लगा

  • मातृ वंदना

  • बापू, तुम मुर्गी खाते यदि…

  • नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे

  • मार दी तुझे पिचकारी

  • ख़ून की होली जो खेली

  • खेलूँगी कभी न होली

  • केशर की कलि की पिचकारी

  • अभी न होगा मेरा अन्त

  • जागो फिर एक बार

 

static_728x90

Leave a comment