राह कौन सी जाऊँ मैं ? – अटल बिहारी वाजपेयी

चौराहे पर लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वजीर
चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ?
राह कौन सी जाऊँ मैं?

सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग झर गया
तिनके टूटे हुये बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?

दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं ?

अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ 

हिंदी ई-बुक्स (Hindi eBooks)static_728x90

11 thoughts on “राह कौन सी जाऊँ मैं ? – अटल बिहारी वाजपेयी

Leave a comment