लला फिर आइयो खेलन होरी – पद्माकर

फागु की भीर, अभीरिन में
गहि गोंवदै लै गई भीतर गोरी।
भाई करी मन की पद्माकर,
ऊपर नाई अबीर की झोरी
छीनि पितंबर कम्मर तें
सु बिदा दई मीड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाय कही मुसुकाय,
‘लला फिर आइयो खेलन होरी’

– पद्माकर

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