क्या खोया, क्या पाया – अटल बिहारी वाजपेयी

क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!

जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ 

हिंदी ई-बुक्स (Hindi eBooks)static_728x90

10 thoughts on “क्या खोया, क्या पाया – अटल बिहारी वाजपेयी

Leave a comment