चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं – राज़िक अंसारी

चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं
जहां पर सब बराबर बैठते हैं
न जाने क्यों घुटन सी हो रही है
बदन से चल के बाहर बैठते हैं
हमारी हार का ऐलान होगा
अगर हम लोग थक कर बैठते हैं
तुम्हारे साथ में गुज़रे हुए पल
हमारे साथ शब भर बैठते हैं
बताओ किस लिये हैं नर्म सोफ़े
क़लन्दर तो ज़मीं पर बैठते हैं
तुम्हारी बे हिसी बतला रही है
हमारे साथ पत्थर बैठते हैं
FB_IMG_1476817070624
शायर : राज़िक अंसारी

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में रहने वाले राज़िक अंसारी जी पिछले 25 वर्षों से शायरी कर रहे हैं । शायरी पढ़ने और मुशायरे , कवि सम्मेलन सुनने का शोक़ बचपन से ही रहा । राहत इंदौरी और नूर इंदौरी साहब की मजलिस में बैठ कर बहुत कुछ सीखने को मिला । उस्ताद नसीर अंसारी साहब की सरपरस्ती में शेर कहने की शुरुआत की । आज तक सीखने का सिलसिला जारी है । इंदौर से प्रकाशित होने वाले संध्य दैनिक ” प्रभात किरण ” के लिए लगातार चार साल तक हर दिन एक कालम ” नावक के तीर ” लिखते रहे । जिसमे रोज़ एक ताज़ा मुक्तक आज के हालात या किसी घटना पर होता था । हमें आशा है की आपको उनकी रचनाएँ पसंद आएँगी ।

राज़िक अंसारी जी द्वारा लिखी अन्य रचनाएँ

 

हिंदी ई-बुक्स (Hindi eBooks)static_728x90

3 thoughts on “चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं – राज़िक अंसारी

Leave a comment