चीज़ों की क़ीमत – प्रिया आर्य “दीवानी’

चीजो की कीमत नहीं होती

वक़्त उनकी कीमत तय करता  है।

गमो का खजाना है ,मेरे पास

देखे कितने दाम में अब ये बिकता है।

इस दौर में ख़रीदलो तुम मुझको भी

पर जो है ही नहीं , देखें हम भी कैसे बिकता है।

जरूरतों और बेबसी का आलम है ,साहब 

बात इससे ज्यादा कुछ और नहीं

चल जाये तो खोटा सिक्का भी सोने के दाम  बिकता हैं।

एक उसके लबो की हँसी के लिए ,खेल ये खेला

साँसे ,रूह ,अहसास और यादों की लगा दी नुमाईश

फिर भी उसके आगे ये सब लगता सस्ता है।

जिस्म की चाह रखने वालों मार दो मुझें

सुना है इस जमाने में मुर्दा भी बिकता है।

प्रिया आर्य “दीवानी”

 

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कवियत्री – प्रिया आर्य “दीवानी”

इनका नाम प्रिया आर्य है परंतु उनका मानना है की कवितायें दीवानेपन में लिखी जाती हैं इसीलिए वह प्रिया दीवानी के नाम से लिखना पसंद करती हैं। वह यह भी कहती हैं की वह सिर्फ़ अहसासों को कागज पर उतारती हैं और स्वतः उनका उनका कोई योगदान नहीं होता । हमें आशा है की आपको उनकी यह अनोखी सोच पसंद आएगी ।

 

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