दिल – राज़िक अंसारी

इमारत एक आलीशान है दिल
कई दिन से मगर वीरान है दिल
कभी ग़ालिब के जैसा शोख़ चंचल
कभी तो मीर का दीवान है दिल
तुझे क्या हमने समझाया नहीं था
मोहब्बत में बड़ा नुक़्सान है दिल
किसी की बात सुनता ही नहीं है
बहुत गुस्ताख़ नाफ़रमान है दिल
तबाही का नहीं अफ़सोस लेकिन
रवैये से तेरे हैरान है दिल
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शायर : राज़िक अंसारी

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में रहने वाले राज़िक अंसारी जी पिछले 25 वर्षों से शायरी कर रहे हैं । शायरी पढ़ने और मुशायरे , कवि सम्मेलन सुनने का शोक़ बचपन से ही रहा । राहत इंदौरी और नूर इंदौरी साहब की मजलिस में बैठ कर बहुत कुछ सीखने को मिला । उस्ताद नसीर अंसारी साहब की सरपरस्ती में शेर कहने की शुरुआत की । आज तक सीखने का सिलसिला जारी है । इंदौर से प्रकाशित होने वाले संध्य दैनिक ” प्रभात किरण ” के लिए लगातार चार साल तक हर दिन एक कालम ” नावक के तीर ” लिखते रहे । जिसमे रोज़ एक ताज़ा मुक्तक आज के हालात या किसी घटना पर होता था । हमें आशा है की आपको उनकी रचनाएँ पसंद आएँगी ।

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