देख तो दिल कि जाँ से उठता है ये धुआं सा कहाँ से उठता है गोर किस दिल-जले की है ये फलक शोला इक सुबह याँ से उठता है खाना-ऐ-दिल से ज़िन्हार न जा कोई ऐसे मकान से उठता है
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गम रहा जब तक कि दम में दम रहा – मीर तकी “मीर”
ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहा दिल के जाने का निहायत ग़म रहा दिल न पहुँचा गोशा-ए-दामन तलक क़तरा-ए-ख़ूँ था मिज़्हा पे जम रहा
अश्क आंखों में कब नहीं आता – मीर तकी “मीर”
अश्क आंखों में कब नहीं आता लहू आता है जब नहीं आता
इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या – मीर तकी “मीर”
इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या आगे आगे देखिये होता है क्या
बेखुदी कहाँ ले गई हमको – मीर तकी “मीर”
बेखुदी कहाँ ले गई हमको, देर से इंतज़ार है अपना
फ़क़ीराना आए सदा कर चले – मीर तकी “मीर”
फ़क़ीराना आए सदा कर चले मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले
हस्ती अपनी हुबाब की सी है – मीर तकी “मीर”
हस्ती अपनी हुबाब की सी है । ये नुमाइश सराब की सी है ।।
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ – मीर तकी “मीर”
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का।
बेखुदी ले गयी – मीर तकी “मीर”
बेखुदी ले गयी कहाँ हम को देर से इंतज़ार है अपना रोते फिरते हैं सारी-सारी रात अब यही रोज़गार है अपना
कहा मैंने – मीर तकी “मीर”
कहा मैंने कितना है गुल का सबात कली ने यह सुनकर तब्बसुम किया जिगर ही में एक क़तरा खूं है सरकश पलक तक गया तो तलातुम किया