सावरे मोकु रंगमें बोरी बोरी सांवरे मोकुं रंगमें बोरी बोरी बहीयां पकर कर शीरकी गागरिया । छिन गागर ढोरी । रंगमें रस बस मोकूं किनी । डारी गुलालनकी झोरी । गावत लागे मुखसे होरी आयो अचानक मिले मंदिरमें । देखत नवल किशोरी । धरी भूजा मोकुं पकरी जीवनने बलजोरे । माला मोतियनकी तोरी तब मोरे जोर कछु न चालो । बात कठीन सुनाई
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दरसन बिना तरसत मोरी अखियां – सूरदास
दरसन बिना तरसत मोरी अखियां तुमी पिया मोही छांड सीधारे फरकन लागी छतिया बस्ति छाड उज्जड किनी व्याकुल भई सब सखियां सूरदास कहे प्रभु तुमारे मिलनकूं ज्युजलंती मुख बतिया
नेननमें लागि रहै – सूरदास
नेननमें लागि रहै गोपाळ नेननमें ॥ध्रु०॥ मैं जमुना जल भरन जात रही भर लाई जंजाल ॥१॥ रुनक झुनक पग नेपुर बाजे चाल चलत गजराज ॥२॥ जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे संग लखो लिये ग्वाल ॥३॥ बिन देखे मोही कल न परत है निसदिन रहत बिहाल ॥४॥ लोक लाज कुलकी मरजादा निपट भ्रमका जाल ॥५॥
देखो माई हलधर गिरधर जोरी – सूरदास
देखो माई हलधर गिरधर जोरी ॥ हलधर हल मुसल कलधारे गिरधर छत्र धरोरी ॥१॥ हलधर ओढे पित पितांबर गिरधर पीत पिछोरी॥२॥ हलधर केहे मेरी कारी कामरी गीरधरने ली चोरी॥३॥ सूरदास प्रभुकी छबि निरखे भाग बडे जीन कोरी॥४॥
नेक चलो नंदरानी उहां लगी – सूरदास
नेक चलो नंदरानी उहां लगी नेक चलो नंदारानी ॥ देखो आपने सुतकी करनी दूध मिलावत पानी ॥ हमरे शिरकी नयी चुनरिया ले गोरसमें सानी ॥ हमरे उनके करन बाद है हम देखावत जबानी ॥
ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी – सूरदास
ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी ऐसी भक्ति । सरवस त्याग मगन होय नाचे जनम करम गुन गावे ॥ कथनी कथे निरंतर मेरी चरन कमल चित लावे ॥ मुख मुरली नयन जलधारा करसे ताल बजावे ॥
जागो पीतम प्यारा लाल – सूरदास
जागो पीतम प्यारा लाल तुम जागो बन्सिवाला । तुमसे मेरो मन लाग रह्यो तुम जागो मुरलीवाला ॥ बनकी चिडीयां चौं चौं बोले पंछी करे पुकारा । रजनि बित और भोर भयो है गरगर खुल्या कमरा ॥
बासरी बजाय आज रंगसो मुरारी – सूरदास
बासरी बजाय आज रंगसो मुरारी । शिव समाधि भूलि गयी मुनि मनकी तारी ॥ बा०॥ध्रु०॥ बेद भनत ब्रह्मा भुले भूले ब्रह्मचरी । सुनतही आनंद भयो लगी है करारी ॥ बास०॥१॥ रंभा सब ताल चूकी भूमी नृत्य कारी ।
देख देख एक बाला जोगी – सूरदास
देख देख एक बाला जोगी द्वारे मेरे आया हो ॥ध्रु०॥ पीतपीतांबर गंगा बिराजे अंग बिभूती लगाया हो । तीन नेत्र अरु तिलक चंद्रमा जोगी जटा बनाया हो ॥१॥ भिछा ले निकसी नंदरानी मोतीयन थाल भराया हो ।
नंद दुवारे एक जोगी आयो – सूरदास
नंद दुवारे एक जोगी आयो शिंगी नाद बजायो । सीश जटा शशि वदन सोहाये अरुण नयन छबि छायो ॥ नंद ॥ध्रु०॥ रोवत खिजत कृष्ण सावरो रहत नही हुलरायो । लीयो उठाय गोद नंदरानी द्वारे जाय दिखायो ॥नंद०॥१॥