चपले! क्यों चमक-चमक कर मेघों में छिप जाती हो? क्यों रूप-छटा तुम अपनी दिखला कर भग जाती हो?॥1॥
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निर्झर – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
ओ निर्झर! झर्-झर्-झर्, कल-कल करता बता रहता तू, प्रतिपल क्यों अविरल?॥1॥
सरिता – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
सरिते! क्यों अविरल गति से प्रतिपल बहती रहती हो? क्षण-भर के लिए कहीं भी विश्राम क्यों न करती हो?॥1॥
वर्षा – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
नभ के नीले आँगन में घनघोर घटा घिर आयी! इस मर्त्य-लोक को देने जीवन-सन्देशा लायी॥1॥
वन्दना – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
हे दीनबन्धु, करुणा-निधान! जगती-तल के चिर-सत्य-प्राण! होरही व्याप्त है कण-कण में तेरी ज्योतिर्लीला महान्॥1॥
दीपक – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
किस लिए निरन्तर जलते रहते हो मेरे दीपक? क्यों यह कठोर व्रत तुमने पाला है प्यारे दीपक?॥1॥ क्या इस जलते रहने में है स्वार्थ तुम्हारा कोई? तुम ही जगमग जलते क्यों जब अखिल सृष्टि है सोई?॥2॥
पूसी बिल्ली – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
पूसी बिल्ली, पूसी बिल्ली कहाँ गई थी? राजधानी देखने मैं दिल्ली गई थी!
चल मेरी ढोलकी – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
चल मेरी ढोलकी ढमाक-ढम, नानी के घर जाते हम। चल मेरी ढोलकी ढमाक-ढम नहीं रुकेंगे कहीं भी हम!
हाथी-हाथी – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
हाथी-हाथी बाल दे, लोहे की दीवाल दे। हाथी-हाथी बाल दे, चाँदी की चौपाल दे।
भालू आया – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
लाठी लेकर भालू आया छम-छम छम-छम छम-छम-छम डुग-डुग डुग-डुग बजी डुगडुगी डम-डम डम-डम डम-डम-डम