कायकूं बहार परी । मुरलीया ॥ कायकू ब०॥ध्रु०॥ जेलो तेरी ज्यानी पग पछानी । आई बनकी लकरी मुरलिया ॥ कायकु
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फुलनको महल फुलनकी सज्या – सूरदास
फुलनको महल फुलनकी सज्या फुले कुंजबिहारी । फुली राधा प्यारी ॥ध्रु०॥ फुलेवे दंपती नवल मनन फुले फले करे केली न्यारी ॥१॥
रसिक सीर भो हेरी लगावत – सूरदास
रसिक सीर भो हेरी लगावत गावत राधा राधा नाम ॥ध्रु०॥ कुंजभवन बैठे मनमोहन अली गोहन सोहन सुख तेरोई गुण ग्राम ॥१॥
तुमको कमलनयन कबी गलत – सूरदास
तुमको कमलनयन कबी गलत ॥ध्रु०॥ बदन कमल उपमा यह साची ता गुनको प्रगटावत
मुरली कुंजनीनी कुंजनी बाजती – सूरदास
मुरली कुंजनीनी कुंजनी बाजती , सुनीरी सखी श्रवण दे अब तुजेही बिधि हरिमुख राजती
शाम नृपती मुरली भई रानी – सूरदास
शाम नृपती मुरली भई रानी ॥ध्रु०॥ बन ते ल्याय सुहागिनी किनी । और नारी उनको न सोहानी ॥१॥ कबहु अधर आलिंगन कबहु । बचन सुनन तनु दसा भुलानी ॥२॥ सुरदास प्रभू तुमारे सरनकु । प्रेम नेमसे मिलजानी ॥३॥
काहू जोगीकी नजर लागी है – सूरदास
काहू जोगीकी नजर लागी है मेरो कुंवर । कन्हिया रोवे ॥ध्रु०॥ घर घर हात दिखावे जशोदा दूध पीवे नहि सोवे ।
मधुरीसी बेन बजायके – सूरदास
मधुरीसी बेन बजायके । मेरो मन मोह्यो सांवरा ॥ध्रु०॥ मेरे आंगनमें बांसको बेडलो सिंचो मन चित्त लायके । अब तो बेरण भई बासरी मोहन मुखपर आयके ॥सां०॥१॥ मैं जल जमुना भरन जातरी मारग रोक्यो आयके ।
जमुनाके तीर बन्सरी बजावे कानो – सूरदास
जमुनाके तीर बन्सरी बजावे कानो ॥ज०॥ध्रु०॥ बन्सीके नाद थंभ्यो जमुनाको नीर खग मृग। धेनु मोहि कोकिला अनें किर ॥बं०॥१॥ सुरनर मुनि मोह्या रागसो गंभीर ।
हमारे कृषक – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं पर शिशु का क्या, सीख न पाया अभी जो आँसू पीना चूस-चूस सूखा स्तन माँ का, सो जाता रो-विलप नगीना