मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती,
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रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है – गुलज़ार
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं
पूरा दिन – गुलज़ार
मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती,
ग़म मौत का नहीं है – गुलज़ार
ग़म मौत का नहीं है, ग़म ये के आखिरी वक़्त भी तू मेरे घर नहीं है.... निचोड़ अपनी आँखों को,
किताबें – गुलज़ार
किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाकातें नहीं होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं
बीते रिश्ते तलाश करती है – गुलज़ार
बीते रिश्ते तलाश करती है ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
लकड़ी की काठी – गुलज़ार
लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
हम को मन की शक्ति देना – गुलज़ार
हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें दूसरो की जय से पहले, ख़ुद को जय करें।