हम उन्हें वो हमें भुला बैठे दो गुनहगार ज़हर खा बैठे हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे तीर मारे थे तीर खा बैठे आंधियो जाओ अब आराम करो हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे
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वो सवा याद आये – ख़ुमार बाराबंकवी
वो सवा याद आये भुलाने के बाद जिंदगी बढ़ गई ज़हर खाने के बाद दिल सुलगता रहा आशियाने के बाद आग ठंडी हुई इक ज़माने के बाद रौशनी के लिए घर जलाना पडा कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बाद
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं – ख़ुमार बाराबंकवी
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है – ख़ुमार बाराबंकवी
ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है कहाँ है ऐ ग़मे-जानाँ! कहाँ है इक आँसू कह गया सब हाल दिल का मैं समझा था ये ज़ालिम बेज़बाँ है
मुझ को शिकस्त-ए-दिल – ख़ुमार बाराबंकवी
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया
बुझ गया दिल – ख़ुमार बाराबंकवी
बुझ गया दिल हयात बाक़ी है छुप गया चाँद रात बाक़ी है हाले-दिल उन से कह चुके सौ बार अब भी कहने की बात बाक़ी है
हिज्र की शब है और उजाला है – ख़ुमार बाराबंकवी
हिज्र की शब है और उजाला है क्या तसव्वुर भी लुटने वाला है ग़म तो है ऐन ज़िन्दगी लेकिन ग़मगुसारों ने मार डाला है इश्क़ मज़बूर-ओ-नामुराद सही फिर भी ज़ालिम का बोल-बाला है
हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए – ख़ुमार बाराबंकवी
हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए इश्क़ की मग़फ़िरत की दुआ कीजिए इस सलीक़े से उनसे गिला कीजिए जब गिला कीजिए, हँस दिया कीजिए
हाले-ग़म उन को सुनाते जाइए – ख़ुमार बाराबंकवी
हाले-ग़म उन को सुनाते जाइए शर्त ये है मुस्कुराते जाइए आप को जाते न देखा जाएगा शम्मअ को पहले बुझाते जाइए शुक्रिया लुत्फ़े-मुसलसल का मगर गाहे-गाहे दिल दुखाते जाइए
तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती – ख़ुमार बाराबंकवी
तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती एक ख़्वाब सा देखा है ताबीर नहीं बनती बेदर्द मुहब्बत का इतना-सा है अफ़साना नज़रों से मिली नज़रें मैं हो गया दीवाना अब दिल के बहलने की तदबीर नहीं बनती